समझ – स्वरूप व स्वभाव की–६
किसी भी वस्तु को जानने के 2 स्तर होते हैं पहला होता है - स्वरूप की समझ - दूसरा होता है स्वभाव की समझ
• जैसे - फूल का एक स्वरूप है जैसा वह दिखाई देता है और एक उसका स्वभाव है जैसी खुशबू उसकी है
• अग्नि का एक स्वरूप है जैसी वो दिखाई देती है और एक उसका स्वभाव है - तपिश
जिसको केवल स्वरूप का ज्ञान है वह उस विषय को पूर्ण रूप से नहीं समझता
जैसे - कोई बच्चा जिसे स्वरूप तो दिखाई दे रहा है लेकिन स्वभाव का नहीं पता तो वह अग्नि में हाथ डाल देगा क्योंकि स्वभाव का बोध नहीं है इसलिए बच्चे की समझ अग्नि के विषय में अधूरी है
इसी प्रकार परमात्मा की कथा को सुन लेना, कुछ जानकारी अर्जित कर लेना, पूजा कर लेना या उनकी छवि को देख लेना यह उनके स्वरूप की समझ है
स्वभाव कि नहीं और यह स्वरूप की समझ आपको बहुत आगे तक नहीं ले जा सकती यह सतही स्तर पर ही है क्योंकि एकरूपता सदा समान स्वभाव वाली वस्तुओं की ही हो सकती है
जैसे- जल में जल मिलकर एक हो जाता है लेकिन जल में पत्थर नहीं मिल सकता, रेत नहीं मिल सकता इसी प्रकार आध्यात्मिकता की शुरूआत वहीं से समझें जब आप ईश्वर के स्वभाव को समझने लगें और उसके अनुसार अपने स्वभाव में बदलाव करने लगें क्योंकि स्वभाव की एक रुपता ही समीपता का एक मात्र माध्यम है
यदि हम इस दिशा में प्रयास करते हैं तभी आत्मिक तल पर प्रगति हो सकेगी ...
Vishal Kumar
26-Jun-2024 07:01 AM
👍👍👍👍👍
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Reena yadav
26-Jun-2024 06:41 AM
आपकी प्रतिक्रिया के इंतज़ार में......
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